एक अविजित पर्वत - कैलाश । Kailash Parvat

मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, एक पर्वतारोही ने अपनी किताब में लिखा था कि उसने कैलाश पर्वत पर चढ़ने की कोशिश की थी, लेकिन इस पर्वत पर रहना असंभव था, क्योंकि वहां शरीर के बाल और नाखून तेजी से बढ़ने लगते हैं। इसके अलावा कैलाश पर्वत बहुत ही ज्यादा रेडियोएक्टिव भी है।

कैलाश पर्वत पर कभी किसी के नहीं चढ़ पाने के पीछे कई कहानियां प्रचलित हैं। कुछ लोगों का मानना है कि कैलाश पर्वत पर शिव जी निवास करते हैं और इसीलिए कोई जीवित इंसान वहां ऊपर नहीं पहुंच सकता। मरने के बाद या वह जिसने कभी कोई पाप न किया हो, केवल वही कैलाश फतह कर सकता है।

कैलाश पर्वत - फोटो : Social media

ऐसा भी माना जाता है कि कैलाश पर्वत पर थोड़ा सा ऊपर चढ़ते ही व्यक्ति दिशाहीन हो जाता है। चूंकि बिना दिशा के चढ़ाई करना मतलब मौत को दावत देना है, इसीलिए कोई भी इंसान आज तक कैलाश पर्वत पर नहीं चढ़ पाया।

सन 1999 में रूस के वैज्ञानिकों की टीम एक महीने तक माउंट कैलाश के नीचे रही और इसके आकार के बारे में शोध करती रही। वैज्ञानिकों ने कहा कि इस पहाड़ की तिकोने आकार की चोटी प्राकृतिक नहीं, बल्कि एक पिरामिड है जो बर्फ से ढका रहता है। माउंट कैलाश को "शिव पिरामिड" के नाम से भी जाना जाता है।

जो भी इस पहाड़ को चढ़ने निकला, या तो मारा गया, या बिना चढ़े वापिस लौट आया।

सन 2007 में रूसी पर्वतारोही सर्गे सिस्टिकोव ने अपनी टीम के साथ माउंट कैलाश पर चढ़ने की कोशिश की। सर्गे ने अपना खुद का अनुभव बताते हुए कहा : 'कुछ दूर चढ़ने पर मेरी और पूरी टीम के सिर में भयंकर दर्द होने लगा। फिर हमारे पैरों ने जवाब दे दिया। मेरे जबड़े की मांसपेशियाँ खिंचने लगी, और जीभ जम गयी। मुँह से आवाज़ निकलना बंद हो गयी। चढ़ते हुए मुझे महसूस हुआ कि मैं इस पर्वत पर चढ़ने लायक नहीं हूँ। मैं फ़ौरन मुड़ कर उतरने लगा, तब जाकर मुझे आराम मिला।

"कर्नल विल्सन ने भी कैलाश चढ़ने की कोशिश की थी। बताते हैं : "जैसे ही मुझे शिखर तक पहुँचने का थोड़ा-बहुत रास्ता दिखता, कि बर्फ़बारी शुरू हो जाती। और हर बार मुझे बेस कैम्प लौटना पड़ता। "चीनी सरकार ने फिर कुछ पर्वतारोहियों को कैलाश पर चढ़ने को कहा। मगर इस बार पूरी दुनिया ने चीन की इन हरकतों का इतना विरोध किया कि हार कर चीनी सरकार को इस पहाड़ पर चढ़ने से रोक लगानी पड़ी।कहते हैं जो भी इस पहाड़ पर चढ़ने की कोशिश करता है, वो आगे नहीं चढ़ पाता, उसका हृदय परिवर्तन हो जाता है।यहाँ की हवा में कुछ अलग बात है। आपके बाल और नाखून 2 दिन में ही इतने बढ़ जाते हैं, जितने 2 हफ्ते में बढ़ने चाहिए। शरीर मुरझाने लगता है। चेहरे पर बुढ़ापा दिखने लगता है।कैलाश पर चढ़ना कोई खेल नहीं

29,000 फ़ीट ऊँचा होने के बाद भी एवरेस्ट पर चढ़ना तकनीकी रूप से आसान है। मगर कैलाश पर्वत पर चढ़ने का कोई रास्ता नहीं है। चारों ओर खड़ी चट्टानों और हिमखंडों से बने कैलाश पर्वत तक पहुँचने का कोई रास्ता ही नहीं है। ऐसी मुश्किल चट्टानें चढ़ने में बड़े-से-बड़ा पर्वतारोही भी घुटने तक दे।हर साल लाखों लोग कैलाश पर्वत के चारों ओर परिक्रमा लगाने आते हैं। रास्ते में मानसरोवर झील के दर्शन भी करते हैं।लेकिन एक बात आज तक रहस्य बनी हुई है। अगर ये पहाड़ इतना जाना जाता है तो आज तक इस पर कोई चढ़ाई क्यों नहीं कर पाया।

आज कैलाश पर्वत भारत की आत्मा का एक हिस्सा होते हुए भी चीन के कब्जे वाले क्षेत्र में स्तिथ है । दुख की बात ये है कि ७० से अधिक वर्ष हो गए भारत को स्वतंत्र हुए परन्तु किसी भी सरकार ने कैलाश की मुक्ति के सफल प्रयास की कोशिश तक नहीं की है ।


: - स्वप्निल तिवारी 

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