छात्रसंघ - बस्तर । स्मरणीय - एबीवीपी । भाग - 1। Story Of Student Politics in Bastar

अगर आपसे कोई गांधी या सुभाष चंद्र बोस में से किसी एक को चुनने को कहे तो आप किसे चुनेंगे । शायद मेरा जवाब होगा कि मैं सुभाष चंद्र बोस को चुनूंगा । जो लोग 2011 - 12 से फेसबुक में जुड़े होंगे उन्हें पता ही होगा की राजनीति में सोशल मीडिया के प्रयोग का एक नया दौर शुरू हुआ था । मेरे जैसे अनगिनत लोग जिन्होंने किशोरावस्था में कदम रखा था वह अच्छे से जानते होंगे की राजनीतिक कमेंट करना एक नया बोल्ड फैशन बन गया था । अन्ना हजारे के आंदोलन से आम आदमी पार्टी को कितना फायदा हुआ होगा उससे कहीं अधिक फायदा अभाविप और भाजपा को हुआ । एक पूरी पीढ़ी का रुझान राजनीति की तरफ बढ़ा और उस वक़्त सत्ता मे बैठे कांग्रेस के विरोध में अधिकतर युवा स्वत: ही अभाविप और आरएसएस जैसे संगठनों की तरफ मुड़ गए । इसी रुख का परिणाम में मेरी भी रुचि राजनीति की तरफ चली गई । 

    फेसबुक में एक बार राजनीतिक बहस चल रही थी जिसमे मैंने भी बहुत सी टिप्पणियां की जो मेरी विचााभिव्यक्ति को दर्शाने के लिए तब काफी थी । यहीं से मेरी मित्रता सोनू भैया द्वारा लक्ष्मण झा से करवाई गई जो उस समय अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद् के जिला संयोजक थे बस्तर में । लक्ष्मण झा से पहली मुलाकात का बहुत गहरा प्रभाव पड़ा ,  हमारी चर्चा लगातार राष्ट्रवााद के मुद्दों पर हो रही थी । मंशा दोनों की तय थी । जगदलपुर के २  प्रमुख कॉलेज बच्चों के मन में राष्ट्रवाद की भावना भरना ।   झा जी को शायद मेरी विद्वता में विश्वास आया या शायद  मेरी सीधी - साधी शक्ल पर  उन्होंने एक दिन मुझे कहा कि मै तुम्हारा नाम जगदलपुर अभाविप के नगर - सह मंत्री के रूप में देना चाहता हूं ।
ये दायित्व अहम था और मेरी राजनीति समझ की शुरुआत भी । 9 जुलाई 2014 को नई नगर कार्यकारिणी का गठन हुआ -
इसमें नगर अध्यक्ष -  जी. राजेश राव थे
   नगर उपाध्यक्ष -   जाधव सर 
  नगर मंत्री -  विक्की साहू 
 नगर सह मंत्री - दिनेश केजी , स्वप्निल तिवारी

इन सब जनो से मेरी पहली मुलाकात यहीं पर हुई थी । 
कार्यकारिणी के गठन का दायित्व 2 कंधो पर था ।
विभाग प्रमुख -  विद्यासागर सिंह 
विभाग संयोजक -  जयराम दास 

 विद्यासागर सिंह व्यक्तित्व से अभाविप बस्तर के लिए पितामह के स्वरूप थे । वहीं जय राम दास व लक्ष्मण झा रीढ़ की हड्डी ।  इस कार्यकारिणी का एक और प्रमुख हिस्सा थे  विश्वविद्यालय प्रमुख - प्रीतेश राव ।

कुछ कुछ दिनों पश्चात पीजी कॉलेज जगदलपुर मैं कैंटीन और बच्चों के साइकिल पार्किंग के लिए एक छोटा सा प्रदर्शन था और इसी प्रदर्शन के दौरान मेरी पहली मुलाकात हुई अभाविप के एक प्रमुख छात्र नेता कृष्णा पांडे से । इन्हें हम पांडे जी कहकर पुकारा करते थे । यही मेरी मुलाकात संतोष गौर से भी हुई ।
नगर सह मंत्री दिनेश केजी और मैं स्वप्निल तिवारी हम दोनों के बीच उस समय कार्यकर्ता कम और दोस्ती का भाव ज्यादा था ।

2014 अगस्त में पहला छात्र संघ चुनाव हुआ । इस चुनाव में मेरी भूमिका तय कर दी गई थी । जयराम दास लक्ष्मण झा दोनों ने कहा , तुम्हारी शैली वह बोलने का तरीका काफी अलग है लड़कियां तुम पर तुरंत विश्वास कर लेती हैं तो मुझे मुख्य तौर पर गर्ल्स कॉलेज जिसे की दंतेश्वरी कॉलेज के नाम से जाना जाता है उसमें अभाविप के लिए सही छात्र नेत्री को चुनाव जिताने में मदद करना था । दंतेश्वरी गर्ल्स कॉलेज के लिए बनी चुनाव कमेटी में सी मेरी मुलाकात अनिल विश्वकर्मा से हुई । 
 मैं क्राइस्ट महाविद्यालय का पूर्व छात्र था इसलिए वहां पर मुझे एक प्रमुख भूमिका दी गई । क्राइस्ट से प्रमुख छात्र नेता का पता लगाना , साथ ही साथ अगर क्राइस्ट महाविद्यालय में किसी भी प्रकार के छात्र संघ चुनाव की गतिविधियों पर नजर रखना इसकी प्रमुख वजह थी क्राइस्ट कॉलेज में थोड़ी बहुत मेरी भी पकड़ थी अंदर ही अंदर ऐसे बहुत से लोग थे जिन से मेरी बात होती थी । उस वक्त एक फेसबुक आईडी थी एबीवीपी जगदलपुर और उस आईडी के द्वारा अनेक लोगों से मै अपना नाम बिना बताए बहुत से छात्र ॊ से बात करता था और बहुत से छात्रों के द्वारा कई सारे राज बाहर आ जाते थे ।ज्यादातर बातें कॉलेज में पकड़ रखने वाले लड़के व उनकी गतिविधियों पर होती थी इसमें यह भी जानने की कोशिश होती थी कि कौन लड़का चुनाव लड़ने के लिए सही हो सकता है अथवा नहीं  । ज्यादातर मौकों पर इसका असर भी दिखता था , किसी कॉलेज मैं पढ़ने वाली लड़कियों का रुझान किन मुद्दों पर है और वह कॉलेज में किस लड़के को एक अच्छे पहचान के रूप में जानते हैं इसकी अच्छी जानकारी हो जाती थी ।  
   मुझे याद है कि इसी बीच अभाविप के प्रमुख वरिष्ठ कार्यकर्ता ने मुझसे पूछा था  - स्वप्निल क्या तुम क्राइस्ट कॉलेज से चुनाव लड़ने के लिए तैयार हो और मेरा जवाब था कि मैं एक बेहतर रणनीति का तो हूं परंतु अभी चुनाव लड़ने योग्य संसाधन जुटाने के लिए परिपक्व नहीं हूं अभी मेरा सीखना बाकी है  ।

 इस चुनाव में सबसे बड़ी लड़ाई चल रही थी पीजी कॉलेज जगदलपुर में क्योंकि यह संभाग का सबसे बड़ा कॉलेज था और अगर प्राइवेट या रेगुलर सभी छात्रों को मिला लिया जाए तो कुल मिलाकर 8 से 10000 बच्चों का सीधा संबंध किस कॉलेज से था और उसमें से भी लगभग 2,000 से अधिक बच्चे इस चुनाव में मत का प्रयोग करने वाले थे और ऐसे कॉलेज में किसी नेता को चुनना आसान काम नहीं था ।

परिषद में पीजी कॉलेज से चुनाव में अध्यक्ष के रूप में किसी लड़की को उतारा जाना था । इससे यह सौदा तय हो गया की इस चुनाव में चेहरा किसी लड़के को सचिव के पद पर बनाया जाना चाहिए।  एक गोपनीय सूची बनी थी जिसमें प्रमुख नाम थे - प्रीतेश राव , कृष्णा पांडे । पर किस्मत का फेर बहुत अलग होता है । यह दोनों ही नाम किसी न किसी वजह से चुनाव में लड़ने की अयोग्य थे । और इसके बाद तय हुआ कि चुनाव में सचिव के पद पर उतरेंगे विक्की साहू जो कि उस वक्त के जगदलपुर के नगर मंत्री भी थे । चुनाव में किसी प्रकार की गुटबाजी ना हो इसके लिए तथा कि विक्की साहू को चुनाव जिताने का पूरा का पूरा दारोमदार कृष्णा पांडे और प्रीतेश राव पर था । वैसे तो विक्की साहू बोलने में काफी तेज तर्रार थे पर फिर भी वह अपने भाषणों को इतना लंबा खींच देते था की छात्र थोड़ा-थोड़ा उठ जाते थे । उसकी इस कमी को कृष्णा पांडे बखूबी पहचानते थे । इसके बाद तय हुआ कि पूरे चुनाव में वक्ता का काम तीन लोग करेंगे पहला कृष्णा पांडे , प्रीतेश राव और मैं स्वयं । चुनाव में हॉस्टल के लड़कों को साधने का काम इंद्रजीत सेठिया का था । इस चुनाव में एक जुझारू कार्यकर्ता के रूप में मैंने इंद्रजीत सेठिया को काम करते हुए देखा । 

चुनाव का सबसे नाटकीय मोड़ तब आया जब अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद की तरफ से अध्यक्ष पद की उम्मीदवार लड़की का नामांकन रद्द हो गया । एनएसयूआई वाले खुशी के मारे फुले नहीं समा रहे थे और इस खुशी के चक्कर में उन्होंने एक बहुत बड़ी गलती कर दी । नामांकन रद्द होने के समय चुनावी आचार संहिता लागू था और शायद एनएसयूआई के मेंबर इस बात को भूल चुके थे , लगातार आचार संहिता का उल्लंघन किए जा रहे थे यही मौका था जब अभाविप को अपनी कूटनीति चली थी । और इस कूटनीति के प्रमुख किरदार थे मनोज पटेल अभाविप के पूर्व कार्यकर्ता । मनोज पटेल भैया ने समझाया की आचार संहिता के उल्लंघन के इस मुद्दे को हमेंंं तुरंत भुनाना चाहिए । और बिना देर किए अभाविप के रणनीतिकार विद्यासागर सिंह के आदेश पर हम लोगों ने एनएसयूआई की अध्यक्ष पद की उम्मीदवार अंकिता साहूू का नामांकन रद्द करवा दिया । इस बात पर उस वक्त बहुत झगड़े हुए और कई सारे मुद्दे भी उठे पर जो होना था हो चुका । आज भी एनएसयूआई के बड़ेे नेताओं को अपनी इस गलती पर पछतावा होता हैं । 

मनोज पटेल अभाविप के शुरुआती नेताओं में से एक थे । बस्तर में अभाविप की जड़ डालने का काम विद्यासागर सिंह , विकास सहारे , विनायक बेहरा , टिकेश्वर जैन मनोज पटेल व संजय पांडे जैसे नेताओं ने किया था । 
विकास सहारे अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद के उन शुरुआती कार्यकर्ताओं में से एक थे जिन्होंने साइकिल पर अकेले चलते हुए विद्यार्थी परिषद को खड़ा करने का काम किया था ।
 चुनाव के दौरान मेरी मुलाकात अभाविप के और भी प्रमुख पूर्व कार्यकर्ताओं से हुई जिनमें मुख्य नाम है शिरीष मिश्रादीपांशु यादव । इस चुनाव में भाजपा के एक प्रमुख नेता से अवगत हुआ राकेश तिवारी मैं अक्सर देखता था कि वह हमें चुनाव संबंधी सलाह देते थे और बहुत सी मंत्रणा है लक्ष्मण झा व जयराम दास इन्ही से करते थे ।

चुनाव संपन्न हुए अभाविप को बहुत बड़ी जीत मिली । पीजी कॉलेज में अभाविप के तीनों प्रत्याशी विजय हुए ।
उपाध्यक्ष - अखिलेश अग्रवाल
सचिव - विक्की साहू 
सह - सचिव - चंद्रशेखर सेठिया

पीजी कॉलेज के साथ ही क्राइस्ट महाविद्यालय दंतेश्वरी कॉलेज में भी अभाविप को बहुत बड़ी जीत मिली । एक कमी जरूर रह गई थी कि हम क्राइस्ट महाविद्यालय का अध्यक्ष पद हार गए थे ।

संभागीय स्तर पर भी अधिकतर कॉलेजों में अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद के कार्यकर्ताओं की ही विजय हुई और इस बदौलत बस्तर विश्वविद्यालय में हुए छात्र महासंघ के चुनाव में हमें जीत मिली । और विक्की साहू पहले छात्र संघ चुनाव में अध्यक्ष पद पर जीत दर्ज कर लिए ।  इस चुनाव में अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद पूरी तरह से एक साथ खड़ा नजर आया था । एनएसयूआई के पास उस वक्त कार्यकर्ताओं की संख्या अधिक थी परंतु अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद् की जीत हुई । वजह थी परिषद की एकता

- Swapnil Tiwari

Comments

Popular posts from this blog

11th Chemistry - Important Question's

12th - Chemistry : Most Important Question

Michnar Hills - A small but beautiful section of bastar