संन्यासी |
एक सन्यासी होने का अर्थ क्या है । भारत में रहने वाला कोई भी व्यक्ति सन्यासी सबसे परिचित अवश्य होगा । अक्सर हम अपने समाज में सुनते हैं कि अमुक व्यक्ति एक सन्यासी है या किसी व्यक्ति ने सन्यास ग्रहण कर लिया , उसका जीवन एक सन्यासी की तरह जीवन है । वैसे तो सन्यासी होना अपने आप में बहुत ही गर्व का विषय होता है परंतु खास बात यह है कि अगर कोई सन्यासी है तो वह गर्व अथवा शर्म अथवा किसी अन्य विचार से परे होता है । सन्यासी शब्द की अगर व्याख्या करने की कोशिश की जाए तो वेदों के बीच सन्यासी व सन्यास के कई तरह के गुण छुपे हो सकते हैं सन्यासी की एक अच्छी व्याख्या हमें श्रीमद्भागवत से मिलती है । श्रीमद् भागवत के सप्तम स्थान में हमें सन्यासियों का वर्णन मिलता है इनमें सन्यासियों के कुछ खास गुण बताएं हैं : एक सन्यासी व्यक्ति भौतिक गुणों से पूरी तरह मुक्त होता है ना तो वह भौतिक अवस्था अथवा भौतिक आचरण के प्रति आसक्त होता है और ना ही उसे किसी भौतिक वस्तु की लालसा होती है । : सन्यासी का एक खास को बताया गया है कि उसे कभी भी किसी पर बाहर नहीं बनना चाहिए अथवा किसी के ऊपर निर्भर नहीं होना चाहिए अगर सन्यासी कहीं