संन्यासी |

एक सन्यासी होने का अर्थ क्या है ।

भारत में रहने वाला कोई भी व्यक्ति सन्यासी सबसे परिचित अवश्य होगा । अक्सर हम अपने समाज में सुनते हैं कि अमुक व्यक्ति एक सन्यासी है या किसी व्यक्ति ने सन्यास ग्रहण कर लिया , उसका जीवन एक सन्यासी की तरह जीवन है ।

वैसे तो सन्यासी होना अपने आप में बहुत ही गर्व का विषय होता है परंतु खास बात यह है कि अगर कोई सन्यासी है तो वह गर्व अथवा शर्म अथवा किसी अन्य विचार से परे होता है ।

सन्यासी शब्द की अगर व्याख्या करने की कोशिश की जाए तो वेदों के बीच सन्यासी व सन्यास के कई तरह के गुण छुपे हो सकते हैं सन्यासी की एक अच्छी व्याख्या हमें श्रीमद्भागवत से मिलती है । श्रीमद् भागवत के सप्तम स्थान में हमें सन्यासियों का वर्णन मिलता है इनमें सन्यासियों के कुछ खास गुण बताएं हैं 

: एक सन्यासी व्यक्ति भौतिक गुणों से पूरी तरह मुक्त होता है ना तो वह भौतिक अवस्था अथवा भौतिक आचरण के प्रति आसक्त होता है और ना ही उसे किसी भौतिक वस्तु की लालसा होती है ।

: सन्यासी का एक खास को बताया गया है कि उसे कभी भी किसी पर बाहर नहीं बनना चाहिए अथवा किसी के ऊपर निर्भर नहीं होना चाहिए अगर सन्यासी कहीं पर एक रात बिताता है तो अगले दिन उसे भोजन के हेतु किसी दूसरे स्थान पर चले जाना चाहिए ताकि वह किसी अन्य व्यक्ति पर निर्भर ना हो सके।

: सन्यासियों को यह ध्यान रखना चाहिए कि अगर उनके पास कुछ अनावश्यक वस्तु है तो वह उन्हें त्याग दें । अगर  वस्त्र आव्यस्यक ना हो तो उन्हें वस्त्र को भी त्याग देना चाहिए  , अगर उनके लिए चरण पादुका है आवश्यक ना हो तो उन्हें इसे भी त्याग देना चाहिए ।  बहुत जरूरी हो तो उन्हें केवल कौपीन ( लंगोट ) धारण करना चाहिए । सन्यासी को निरंतर आगे बढ़ने हेतु अपने पास एक दंड रखना चाहिए तथा जल हेतु उसे कमंडल भी अपने पास रखना चाहिए ।

: सन्यासियों को यह ध्यान रखना चाहिए कि वह किसी अनावश्यक विवाद में ना पड़े , उसे मृत्यु तथा जीवन की प्रशंसा से बचना चाहिए क्योंकि यह दोनों ही चीजें नियति है । सन्यासियों को पक्ष लेने से बचना चाहिए उन्हें किसी भी तरह किसी का पक्ष नहीं लेना चाहिए किसी के विपक्ष में नहीं खड़े होना चाहिए ।

: सन्यासी को शिष्य एकत्रित करने की चेष्टा नहीं करनी चाहिए , अगर कोई व्यक्ति स्वयं आकर उससे कहे तो वह उसे अपने साथ लेकर आगे बढ़ सकता है ।

: सन्यासियों को अपने ज्ञान का बखान कभी नहीं करना चाहिए वस्तुतः दूसरों के सामने उन्हें एक छोटे बालक की भांति अज्ञानी बने रहना चाहिए  । एक बहुत अच्छा वक्ता होते हुए भी उसे एक श्रोता की भांति खुद को प्रदर्शित करना चाहिए ।


संन्यासी के ये कुछ मूल गुण भागवत में बताएं हैं और इस से आपको एक सन्यासी को समझने में सहायता मिलेगी , और अपने जीवन में किसी संन्यासी पुरुष को पहचानने में भी ।

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