पर स्त्री के प्रति पुरूष का स्वभाव

व्यक्ति राह पर आगे बढ़ते हुए एक कोमल स्वभाव, गरिमापूर्ण, आकर्षक कुंवारी स्त्री को देखता है। 
व्यभिचारी पुरुष अपने आंखो से उसे देखते हुए आगे बढ़ते हैं, उनके लोभी, मन में उसके इस भौतिक शरीर के प्रति एक प्रकार की आकांक्षा जन्म लेती है और वह उसे प्राप्त करने हेतु लालायित हो उठता है । 
व्यभिचारी दंभी पुरूष उस स्त्री को प्राप्त करने के साम, दाम, दण्ड, भेद के प्रकारों पर विचार करने लगता है। 
व्यभिचारी पुरुष अगर अविवाहित है तो उसके मन में विवाह की इक्षा जन्म लेती है और अगर वह विवाहित हैं तो वह उस स्त्री से मित्रता की चेष्टा करता है ।
कर्तव्य परायण विवाहित पुरुष अगर किसी आकर्षक सुंदर स्त्री को देख भी ले और उसके प्रति आकृष्ट भी हो जाए तो भी वह अपने मन को वश में करते हुए अपना ध्यान अपने धर्म पर केंद्रित करता है ।
कर्तव्य परायण विवाहित पुरुष जो व्यभिचारी तो नही है परन्तु कामुक स्वभाव का है वह किसी दूसरी सुंदर अप्सरा को देखने पर अपने मन में अपनी पत्नी की एक सुंदर छवि की कलपना करता है और अपने काम भावना को अपनी पत्नी की तरफ़ केंद्रित करता है। 
एक भद्र पुरुष जो अपने जीवन को अब एक लक्ष्य के तरफ़ केंद्रित कर चुका है वो अप्सरा को देखने के बाद भी अपने लक्ष्य को याद करते हुए अपना पूरा ध्यान अपने लक्ष्य पर केंद्रित रहता है, उसकी कल्पना रहती है कि वह अपने अगले जन्म ऐसी ही सुंदर स्त्री का साथ प्राप्त करे। 
एक संन्यासी पुरूष किसी सुंदर स्त्री को देखने पर भी उसके भौतिक शरीर पर ध्यान न देते हुए केवल उसके और आसपास के सभी व्यक्तियों के स्वभाव के आधार पर उसे आशीर्वाद देते हुए आगे बढ़ जाता है ।
एक ब्रह्मचारी पुरूष किसी देव अप्सरा को भी अपने माता स्वरुप मानते हुए केवल उस स्त्री के चरणों के सामने की भूमि को देखता है। 
और एक ब्रह्मचारी त्यागी संन्यासी के लिए स्त्री और पुरूष का स्वरुप एक बराबर होता है जिसे वो एक जीव के रूप में देखता है जो उसके पिता ब्रह्मा द्वारा रचित है। 

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